महाभारत युद्ध के पश्चात वैदिक धर्म का लोप होने लगा | नये नये मत और पन्थ पनपने लगे | शंकराचार्य जी ने अद्वेतवाद का प्रचार किया | रामानुजनाचार्य ने विशिष्टाद्वैतावाद की स्थापना की तो माधवाचार्य ने द्वैतवाद की ,निम्बकाचार्य ने द्वैताद्वैत का , वल्भाचार्य ने शुद्धद्वैतवाद का और श्री चेतन्य ने भेदाभेदभाव का प्रचार किया | वैदिक सिद्धांतो के मर्मज्ञ ,गम्भीर चिंतक और विचारक स्वामी विद्यानन्द सरस्वती ने “ तत्वमसि “ नामक ग्रन्थ का प्रणयन करके अवैदिक मतो का प्रबल प्रत्याख्यान किया | नई नई युक्तियो ,दृष्टान्तो और प्रमाणों का बाहुल्य स्वामीजी ने इस पुस्तक में किया है जो कि उनकी नव नवोन्मेषशाली बुद्धि का परिचायक है | इस ग्रन्थ में ईश्वर ,जीव ,प्रकृति के स्वभाव कार्यादि पर दार्शनिक दृष्टि से विचार किया है ,इन विषयों से साक्षात सम्बन्धित अनेक आवश्यक विषयों स्वप्न ,निंद्रा ,आदि की विशद चर्चा भी इस ग्रन्थ में है | पुस्तक की प्रतिपादनशैली का अपना असाधारण वैशिष्टय है | इसमें पहले मुख्य विचार मत को सूत्र रूप में रखा गया है और बाद में सूत्रोंक्त मत का विस्तार किया गया है | हमे विश्वास है कि स्वाध्याय शील पाठक और दर्शन जिज्ञासु छात्र इस पुस्तक को अपनाएंगे तथा रूचि और मनोयोग से पढ़ेंगे | लेखक परिचय – स्वामी विद्यानंद सरस्वती जी का जन्म १९१४ में बिजनौर में हुआ था आपके पिता का नाम केदारनाथ दीक्षित था | आपने होशियारपुर तथा लाहोर के डी ए वी कोलेज में की | आपका विवाह शास्त्रार्थ महारथी देवेन्द्रनाथ शास्त्री जी की सुपुत्री श्रीमति शकुन्तलादेवी शास्त्री ,काव्यातीर्थ के साथ सन १९३९ में हुई | आपने ५० वर्ष का प्राध्यापन काल किया जिसमे आप होशियारपुर तथा पानीपत के पोस्टग्रेजुएट कोलेज के प्रिंसिपल रहे | आपने आर्यसमाज के सभी महत्वपूर्ण सत्याग्रहो में भाग लिया जैसे सत्यार्थ प्रकाश प्रतिबन्ध के विरुद्ध सत्याग्रह तथा पंजाब विभाजन के विरुद्ध सत्याग्रह आदि | आपने वेदमीमांसा ,भूमिका भास्कर ,सत्यार्थ भास्कर ,अनादितत्वदर्शन, प्रस्थानत्रयी या अद्वेत मीमांसा , वैदिक कांसेप्ट ऑफ़ गोड,थ्योरी ऑफ़ रिएल्टी ,नास्तिकवाद ,ईशोपनिषद् रहस्य अथवा अध्यात्ममीमांसा ,त्यागवाद ,सृष्टि विज्ञानं एवम विकासवाद ,आर्यों का आदिदेश आदि महत्वपूर्ण ग्रन्थ लिखे | आपका निधन ३० जनवरी २००३ में हुआ |
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