योग जीवन और भोग रोगों का हेतु है | रजोगुण और तमोगुण से आच्छादित मन में इच्छा-द्वेष, काम-क्रोधादि विकार उत्पन्न होने से बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है| इसके कारण मनुष्य आहार – विहार का सेवन करने लगता है और मानसिक और शारीरिक दोषों को ग्रसित हो जाता है | इन दोषों को दूर करने के लिए विभिन्न उपाय करता है मगर योग के बिना इनकी पूर्ण निवृत्ति संभव नहीं है| प्रस्तुत पुस्तक में इसी उद्द्देश्य को ध्यान में रखकर, शारीरिक और मानसिक रोगों की चकित्सा एवं धारणा-ध्यान की विभिन्न पद्धतियों का सरल भाषा में वर्णन किया गया है|
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